Tuesday, December 9, 2014

कुछ कविताएँ-३

सच 

जो दिख रहा है
वो सच नहीं है,
जो सुनाई  दे रहा है
वो सच नहीं है,
जो लग रहा है
वो सच नहीं है,
..मगर सच यही है


सियासत

ऐ सियासी लोगो  
न उलझाओ लोगो को बिन बात के मुद्दों में
न वो राम चाहते हैं 
न वो अल्लाह चाहते हैं
वो बहन बेटियों की हिफाज़त चाहते हैं,
उम्र की तारीकी से पहले 
जो कर दे इन्साफ वो अदालत चाहते है,
घर से बाहर जो निकले कोई
वापसी उसकी वो सही सलामत चाहते है, 
बरसों से ढो रहे हैं लोग न जाने क्या क्या 
अब इस बोझ में कुछ रियायत चाहते है,  
हो अमन हर तरफ यहाँ पर
अब न कोई शहादत चाहते है,
ऐसे वैसे लोग न हो संसद में
अब संसद में शराफत चाहते है,
बिन वादे के भी जो पूरी कर दे जरूरत
अहले-वतन चाहे अब ऐसी सियासत






Monday, November 24, 2014

कुछ कविताएँ-२





घर के दरवाज़े की घंटी बजाते हैं 

और खुद ही पूछते है “कौन है?”

बच्चे ये खेल खेलते है

और खेल खेल में शायद यही बताते है

खुद हम अपनी ही तलाश है

                       -तलाश


माँ लगती है

छोटी सी बच्ची कभी-कभी,

छोटी कोई बच्ची भी और

माँ सी लगती है कभी-कभी

                     -माँ




जिनके बाजू नहीं होते

ज्यादा बोझ उठा लेते हैं,

खो देते है जो आँखें

देख लेते है वो रूह भी,

बिन कानों के भी

सुन लेते है कुछ लोग

दिल की बातें सारी,

जहाँ जो नहीं होता

वहाँ  मिल जाता है वो

          -उम्मीद


इस खाली जगह पे
क्यों मंडराता है ये परिंदा,

यहाँ पे शायद
उसका आशियाना था
                 -पेड़ 


कोई मारता है इन्हें

या करती है खुदकुशी ये

पता नहीं...

पर हाँ

मर रही है संवेदनाएं

        -संवेदनाएं


Friday, October 31, 2014

कुछ कविताएँ-१



तुम न बदलोगे खुद अगर
जमाना तुम्हे बदल देगा,
ये न सोचना तुम 
जैसे हो वैसे ही रहोगे सदा

२ 
जो भूलना होता आसाँ,
ग़म होते मेहमाँ,
मकाँ मालिक नहीं 

३ 
कह रहे हैं सब यही 
कि उसने खुदकुशी की है
काश...
किसी को पीठ का खंज़र दिखाई दे

बचपन में हर गली
हमें खेलने बुलाती थी
अब ये आलम 
कि लोग पूछते है नए हो क्या?